इसके पूर्व दो भागों में हमने स्व पृथक्करण कौन कर सकता है, वहाँ ती साफ-सफाई कैसे रखनी है, उसी प्रकार किन लक्षणों को गंभीरता से लेना है, इन सभी के बारे में जानकारी ली।
*क्या केअरगिव्हर को भी स्व पृथक्करण करना चाहिए? *
• भारत में बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि बीमार व्यक्ति का ध्यान परिवारजन ही रखते है। परंतु सद्यः परिस्थितिया ही कुछ ऐसी हो गई है कि लोगों को अकेले रहना पड़ रहा है। ऐसे कठिन समय में केअरगिव्हर ही एक बड़ा सहारा है।
• इस केअरगिव्हर को किसी प्रकार के शारीरिक रोगादि न हो। रोगी का ध्यान रखते समय तथा रोगी को सामान देते लेते समय, वह रोगी से कम से कम संपर्क हो, इस बात की सावधानी बरतें।
• यदि रोगी के कमरे में जाना ही पड़े तब ऐसी स्थिति में वह सोशल डिस्टंन्सिंग, मास्क पहनने के नियम आदि का कड़े रूप से पालन करे ही और कमरे की खिड़कियां भी खोल दे जिससे कमरा हवादार बना रहे।
• इसके बावजूद लक्षण दिखाई देने पर या रोगी की आयसोलेशन कालावधि समाप्त हो जाने पर, सावधानी के तौर पर केअरगिव्हर यदि स्व-पृथक्करण करे तो यह उत्तम ही है।
होम आयसोलेशन (स्व-पृथक्करण) एवं मानसिक स्वास्थ्य-
१. मन को बहलाने के अनेकों उपाय, आपको अनेकों ने बताए ही होंगे, अत: यहाँ मै उस विषय के बारे में कुछ नहीं कहती,(फिर भी इस विषय पर जानकारी प्राप्त करने हेतु लेख के अंत में दिए गए नंबर पर मेसेज कर सकते है। ) परंतु एक मुद्दे पर मै पुनः जोर देना चाहूँगी कि स्व-पृथक्कृत रोगी पहले से ही, इस बीमारी के बारे में नाना प्रकार की जानकारी पढ़कर घबराएं हुए होते है, उसपर यह अकेलापन उत्पीड़ित करता है। पर ऐसा होते हुए भी, यह पृथक्करण अत्यंत आवश्यक है। किसी भी प्रकार की भावनाओं में बहकर इसे तोड़े नहीं। परिवारजन भी प्रत्यक्ष मिलने के मोह को टालें।
२. यदि आवश्यकता पड़े तो समुपदेशक की सहायता भी ले सकते है वरना हम वैद्य गण आपकी मदद के लिए है ही।
३. आजकल लोग तंत्रज्ञान के कारण बहुत नजदीक आ गए है। विडियो कॉल्स जैसे प्रभावी माध्यम हमारे पास है, अत: समय निर्धारित कर, रिश्तेदार, मित्रजन समय निर्धारित कर कॉल कर संपर्क में रह सकते है।
COVID 19 की चिकित्सा एवं आयुर्वेद:
१. हम वैद्यों को इस प्रश्न का बार-बार सामना करना पड़ता है और होम आयसोलेशन में समय गुजारनेवाला व्यक्ति इस बारे में सोचता ही है।
२. आयुष मंत्रालय पर पहले ही दिन से, आरोग्य मंत्रालय एवं केंद्र सरकार के बीच समन्वय साँझे हुए हैं।
३. प्रारंभ में, आयुर्वेदीय वैद्यों को कोरोना संसर्ग का खतरा कम करने हेतु, व्याधिक्षमत्त्व उपचार (Immunity booster measures) करने की अनुमति दी गई। इसमें रोज करने जैसे १३ उपायों के साथ, दिनचर्या/ऋतुचर्या अर्थात अपना आरोग्य उत्तम रखने हेतु, दिनक्रम किस प्रकार का होना चाहिए इस बारे में जानकारी दी गई थी। तद्नुसार बहुत से वैद्यों ने इन उपक्रमों का जनसामान्य में प्रचार एवं प्रसार किया। वैयक्तिक तौर पर कहें तो, समन्वय आयुर्वेद की ओर से हमने, आयुष मंत्रालय द्वारा निर्देशित सूची अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने का प्रयत्न किया। जिन्होंने इन उपक्रमों को विस्तार में जानने की इच्छा दिखाई उन्हें दिनचर्या-ऋतुचर्या के विषय में मार्गदर्शन भी किया। (डाएट अँड लाईफस्टाईल करेक्शन )
४. इसके बाद आयुष मंत्रालय ने उपचार के दूसरे चरण में क्वारंटीन और होम आयसोलेशन के रोगियों को, अलाक्षणिक या सौम्य लक्षणों से युक्त रोगियों के क्लिनिकल ट्रायल किए गए। केरल, दिल्ली, गुजरात इन राज्यों में सफलतापूर्वक यह ट्रायल्स संपन्न हुए और यह ट्रायल्स १००-२०० नहीं बल्कि ५०००-६००० रोगियों पर औषधोपचार किए गए। इन उपचारों की सफलता के बाद, चिकित्सा के मार्गदर्शक तत्त्व (*Treatment Guidelines for asymptomatic and mild symptomatic cases* ) घोषित किए गए। अब इन तत्वों के आधार पर देशभर के एवं उसी प्रकार महाराष्ट्र के भी अनेक वैद्यों ने अपने-अपने स्थान पर से ही,उपर्युक्त वर्गों के अनेक रोगियों की यशस्वी चिकित्सा कर रहे है।
५. आयुर्वेद शास्त्रानुसार की जानेवाली चिकित्सा, एलोपैथी मूल की जानेवाली चिकित्सा से भिन्न है। उदा. साँस फूलने पर सदैव एक ही औषधि दी जाती है, ऐसा नहीं है। यहाँ रोगी की प्रकृति, व्याधि की प्रकृति (लक्षणानुसार) , अतः साँस फूलना इस लक्षणों में भी व्यक्तिनुसार दोष पृथक हो सकते है, इसका कारण *आयुर्वेदोक्त निदानपंचक पद्धति (pathogenesis & diagnosis) इन सभी का विचार करने के पश्चात ही प्रोटोकॉल्स निर्धारित किए जाते है।
६.उसी प्रकार आगे कहे तो, आयुर्वेद शास्त्र में रसायन चिकित्सा कही गई है। रसायन अर्थात कायाकल्प (Rejuvenation)। किसी दीर्घकालीन या कोरोना जैसे तीव्रवेगी विकार से कोई व्यक्ति ठीक हुआ हो फिर भी उसके शरीर पर पूर्व विकार के दुष्परिणाम दिखाई देते ही है और अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो सकते है। यह दुष्परिणाम कम करने के लिए कुछ औषधियाँ कही गई है जिन्हें रसायन संज्ञा दी गई है। परंतु इन औषधियों के लेने के पहले कई मुद्दों पर विचार करना होता है अतः यह औषधियाँ वैद्य की सलाह से ही ले।
७. प्रारंभ से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा लेनेवाले रोगियों की संख्या में, फिल्हाल काफी बढोत्तरी हो रही है। और समय पर चिकित्सा शुरू करने के कारण उपशय भी जल्दी मिल रहें हैं।
८. एक महत्वपूर्ण बात यह कि इस करवाते समय व्हाट्सएप युनिवर्सिटी से सावधान रहें। फेसबुक/व्हाट्सएप के मेसेजेस् जिज्ञासावश पढ़ना अलग बात है पर उन मेसेजेस् के अनुसार स्वयं की चिकित्सा स्वयं करना कहाँ तक समझदारी है?
९. कोरोना, चीनी षड्यंत्र है या अस्पतालों के पैसे ऐठनें की तरकीब, इस बारे में नमक-मिर्च लगा कर वाद-विवाद हो सकते है परन्तु सचमुच लक्षण होने पर वैद्यकीय सलाह न लेते हुए, इन मेसेजेस् के आधार पर केवल घरेलू नुस्खे आज़माना कहाँ तक समर्थनीय है।
१०. आप के नज़दीक निश्चित ही कई पंजीकृत अच्छे वैद्य हैं, उनकी सलाह अवश्य लें। झोलाछाप, ढोंगी एवं पदवी रहित वैद्यों से बचे।
समय पर निदान व उपचार किया जाए तो कोरोना पर विजय संभव है। इसलिए अपना समय बर्बाद न करें। चिंता न करें पर ध्यान अवश्य दें। आयोग हमेशा आप के साथ है।
(समाप्त)
सूचना: वैद्य की सलाह लेते समय, वह शिक्षित एवं पंजीकृत वैद्य है इसकी तसल्ली कर ले। अपनी राय देने व शंका निरसन करने हेतु आप मुझे मेरे वैयक्तिक नंबर पर अथवा ई-मेल पर संपर्क कर सकते है । इसके आगे के लेख आनेवाले रविवार को सवेसे ब्लॉग पर उपलब्ध होंगे। यह लेख आपको वॉट्सऐप /ईमेल द्वारा प्राप्त करने हेतु नीचे दिए नंबर पर मेसेज करे अथवा हमारा फेसबुक पेज को लाईक करें।
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डॉ. स्निग्धा चुरी-वर्तक.
9870690689
अनुवादक: वैद्य प्रीति सिंह - म्हात्रे
अथर्व आयुर्वेद , पनवेल.
9821726815
प्रस्तुत लेख वैद्या स्निग्धा चुरी वर्तक ने ०७ अगस्त २०२० को अपने ब्लॉग
https://samanwayayurved.blogspot.com/2020/08/blog-post_9.html
पर प्रकाशित किया था। लेख के सभी अधिकार लेखकाधीन है। लेख अन्यत्र शेयर करने हेतु कृपया लेख में किसी भी प्रकार का बदलाव न करें तथा लेखिका के नाम सहित शेयर करें।
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